Tuesday, June 26, 2012

समाचार पत्र का स्वरुप - 02

वर्षो पहले समाचारपत्रों की छपाई तथा कम्पोजिंग की जो व्यवस्था थी उससे अब बहुत परिवर्तन हो चुका है. इससे सम्पादकीय विभाग के स्वरुप पर भी असर पड़ा है. अब कम्प्यूटर का जमाना है पहले पत्रकार हाथ से समाचार लिखते थे, फिर टाइप करके समाचार लिखने का युग आया और अब तो सीधे कम्प्यूटर पर समाचार देने का जमाना आ गया है. रिपोर्टर की डेस्क पर कम्प्यूटर का टर्मिनल लगा दिया जाता है और उप संपादक, समाचार संपादक आदि सहयोगी अपनी डेस्क पर बैठे बैठे कम्प्यूटर तकनीक से रिपोर्टर के समाचार में अवाश्कतानुसार संशोधन तथा हेडिंग लगाकर  पेज मेकर कक्ष को भेज सकते है. कम्प्यूटर की स्क्रीन पर पेज का मेकअप तथा अवाश्कतानुसार इसमें फेरबदल की गुंजाईस होती है.अब तो मॉडम तथा संचार  उपग्रह लिंक के माध्यम से पूरा अखबार एक स्थान से दुसरे स्थान पर तैयार करने की सुविधा सुलभ हो गयी है. सम्पादकीय विभाग को समाचारों का गलियारा कहा जाता है. सम्पादकीय विभाग में समाचार समितियों की टेलिप्रिंटर  मशीनो  [ अथवा कंप्यूटर मॉडम पर समाचारों की प्राप्ति ], अपने संवाददाता द्वारा प्राप्त खबरे, प्रेस विज्ञप्तियो द्वारा मिलने वाली खबरे तथा फोटोग्राफ इत्यादि  में से खबरों का चयन एवं  सम्पादन किसी समाचारपत्र के संस्करणों की संख्या के आधार पर पारी दर पारी चलता रहता है.

सम्पादकीय विभाग की संरचना
एक ज़माने में सम्पादकीय विभाग में कार्यरत पत्रकारों की संख्या उगलियों पर गिनी जा सकती थी. किन्तु अब ऐसा नहीं है. समाचारपत्रों की पृष्ठ संख्या बढने, एक से अधिक संस्करणों का प्रकाशन तथा आधुनिक तकनीक की वजह से अधिक प्रेस मैटर की जरुरत को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय, प्रादेशिक तथा स्थानीय स्तर पर भी समाचारपत्रों में पत्रकारों की संख्या पांच - दस से लेकर डेढ  से दो सौ तक पहुंची है जो विभिन पारियों में कार्य करते है. इस तरह सम्पादकीय विभाग का कक्ष सुबह के कुछ घंटे के अलावा दिन रात गतिशील बना रहता है.

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