Thursday, June 28, 2012

समाचार पत्र का स्वरुप - 03

प्रधान संपादक

किसी भी समाचारपत्र का मुखिया, उसका प्रधान संपादक होता है, जिसके मार्गदर्शन में समाचारपत्र का प्रकाशन होता है.एक जमाना था जब प्रधान संपादक समाचारपत्र की रीति नीति तय करते थे और संपादक विशेष से समाचारपत्र की साख जुडी होती थी.
                             प्रधान संपादक पत्र की रीति - नीति और व्यवस्था के अनुसार सम्पादकीय विभाग के सहयोगियों के चयन से लेकर उनके बीच कार्य  - विभाजन तथा उसके निरीक्षण का दायित्व निभाते है.  समाचारपत्र में प्रकाशित की जाने वाली प्रत्येक सामग्री के लिए क़ानूनी रूप से संपादक तहत उसके प्रकाशक को उत्तरदायी मन जाता है. इसलिए संपादक शब्द की व्याख्या 1867 के प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट में इस  प्रकार की गयी है – EDITOR MEANS THE PERSON WHO CONTROLS THE SELECTIONS OF THE MATTER THAT IS PUBLISHED IN A NEWSPAPER.  इसी नियम के अनुसार प्रकशित समाचारपत्र के प्रतेक अंक पर मुद्रक और प्रकाशक के साथ साथ संपादक का नाम भी प्रकाशित किया जाता है.
पिछले दशको से संपादक संस्था का निरंतर अवमूल्यन हुआ है. समाचारपत्रों की प्रबन्ध व्यवस्था में मालिको - प्रबंधको का सीधा हस्तक्षेप होने से सम्पादकीय स्वतंत्रता का आस्तित्व खतरे में पड़ गया है. अब समाचारपत्रों में प्रबंधक प्रधान होते जा रहे है. आर्थिक समचापत्रो में तो संपादक मार्केटिंग के पड़ सृजित  किये जाने जाने लगे है.
इस सबके बावजूद समाचारपत्रों में प्रधान संपादक या संपादक का अहम् स्थान है. जो नियमित रूप से प्रकाशित समाचारपत्र को आम पाठको तक पहुचाने का मार्ग प्रशस्त करते है. जैसा की हम जानते है की समाचारपत्र का प्रकाशन एक टीम वर्क के रूप में होता है और स्वाभाविक रूप से संपादक इस टीम का कप्तान होता है. प्रधान संपादक या संपादक, समाचारपत्र के सम्पादकीय विभाग के प्रमुख के नाते अपने सहयोगियों को आवश्यक दिशा निर्देश देता है. वह अपने वरिष्ट सहयोगियों के साथ प्राय नियमित रूप में बैठक बुलाकर विचार विमर्श करता है तथा प्रकाशित समाचारपत्र की समीक्षा के साथ अगले दिन प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र के बारे में चर्चा करता है. समाचारपत्र एक ऐसा मैदान है जहाँ पर हर रोज तथा समाचार का प्रत्येक संस्करण, मैच के सामान होता है.

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